Sunday, 3 July 2011

रेत का घर

तुझको अपना बनाने की ख्वाहिश थी बस 
बस तेरा नाम मै गुनगुनाता रहा
तुझको रख के निगाहों में साहिल सदा 
सारी दुनिया से नज़रें चुराता रहा 

बस तेरा नाम लेकर मै जीता गया 
ख्वाब तेरे हमेशा सजाता रहा
देखता था तुझे हर घडी हर जगह
रेत पर घर हमेशा बनाता रहा

एक दिन आया झोंका हवा का मगर
जो की साहिल के घर को उड़ाता रहा 
मै भी मजबूर था वो मेरे सामने 
रेत में मेरे घर को मिलाता रहा

जिसको अपना बनाने की कोशिश करी
उम्र भर मुझसे दामन बचाता रहा
किससे कहता ? है साहिल अकेला बहुत
वो अकेला ही आंसू बहाता रहा........