Tuesday, 9 August 2011

लबों की ख़ता थी ये कि उनका ज़िक्र कर दिया
ये हाथ तो सज़दे में अपने आप उठ गए ......

Monday, 8 August 2011


मैंने सोचा की कुछ लिखूं उनकी
नशीली झील सी दो आँखों पे
पर ये कैसी कशिश है ज़ालिम में 
कलम भी अपने होश खो बैठी..

Sunday, 7 August 2011

दोस्तों तुम्हारी दोस्ती का शुक्रिया

तुम्ही से सारी हंसी- मस्ती,मज़ाक और चुटकुले 
लम्हा लम्हा दिल्लगी का शुक्रिया

सारे ग़म सब मुश्किलों में भी तुम्ही बस साथ हो
फेविकोल सी दोस्ती का शुक्रिया 

ज़िन्दगी के 'कैनवास' पे रंग सारे तुम से हैं
रंग बिरंगी ज़िन्दगी का शुक्रिया 

मंजिलें जो भी रहें रस्तों का मतलब तुम से है
हर कदम आवारगी का शुक्रिया

दोस्तों तुम्हारी दोस्ती का शुक्रिया

Friday, 5 August 2011

तुम पहली किरण हो....


झाँक के देखी जो अपने दिल में
मैंने अहमियत तुम्हारी
तो तुम्हे पाया मैंने अपने दिन में
पहली किरण की जगह



पहली किरण जो हौले से देती है दस्तक
मेरी अँधेरी रातों के दरवाज़े पर

और कहती है
"मुझे मालूम है तुम्हे रात भर था  मेरा इंतज़ार 
इसी लिए आई हूँ करने, मै तुम्हारे दिन का श्रृंगार

परन्तु मै इतनी आसानी से नहीं मिलूंगी तुम्हे
मुझे पाने के लिए तुम्हे नींद से जागना होगा
मेरे इंतज़ार में जो सपने देखे थे रात भर
उन्हें साकार करने के लिए दौड़ना-भागना होगा

दिन भर साथ रहूंगी तुम्हारे
पर सिर्फ तुम्हारी प्रेरणा बनके
अगर कर पाए तुम इस अग्नि-परीक्षा को पार
तब दे दूँगी मै तुम्हारे सपनों को आकार 

कड़ी धूप से मै शीतल छाँव बन जाऊँगी
बनूँगी साँझ, साँझ बन के मै ढल जाऊँगी
महसूस करना मुझे उगते हुए चाँद की शीतलता में 
मै बन के चांदनी तुम्हारे आँगन में उतर आऊंगी

तुम्हारी ही तरह मुझे भी है  उस पल का इंतज़ार 
मै सिमट जाऊँगी तुम में, मुझे बाहों में भर लेना
हसीन रात, ठंडी पुरवाई, और सिर्फ हम दोनों 
तारों की छाँव में अपने सारे सपने सच कर लेना
अधूरे से हैं हम दोनों ही एक दूजे क बिन साथी
एक हो कर हम दोनों को मुकम्मल कर देना

परन्तु इस अथाह असीमित प्रेम-पूरित 
पल को पाने के लिए तुम्हे अभी नींद से जागना होगा
मेरे इंतज़ार में जो सपने देखे थे रात भर
उन्हें साकार करने के लिए दौड़ना-भागना होगा....."

तुम्हारी बातें सुनते ही मै उठ खडा होता हूँ
दिन भर कड़ी मेह्नत करने के लिए तैयार
क्यूंकि ज्ञात है मुझे कि तभी कर पाऊंगा
अपने और तुम्हारे सपनों को साकार

तुमसे बस इतना ही निवेदन है प्रिये
रोज़ यूँ ही पहली किरण बन के
मुझे नींद से जगाती रहना
बन के तुम प्रेरणा मन्ज़िल की तरफ
यूँ ही मेरे कदम बढ़ाती रहना

हमेशा मेरे दिन की पहली किरण बनी रहना.....

तेरी आँखें....



सोच रहा था आज यूँ ही बैठा बैठा मैं 
क्यूँ न लिख दूं आज नयी कोई कविता मैं

सागर से गहरी तेरी इन दोनो  आँखों पे
उनसे जुड़ी बड़ी और छोटी सब बातों पे

इन आँखों में कितनी बातें छुपी हों जैसे
जो होठों पे आते आते रुकीं हों जैसे

लगता है कि अभी ये आँखें बोल उठेंगी
राज़ तुम्हारे दिल का कोई खोल उठेंगी

राज़ हैं जो भी उनको ज़रा छुपा के रखना
अपनी पलकों को तुम ज़रा झुका के रखना

वरना ये आँखें न जाने क्या कर देंगी
जाने कितनो को ये दीवाना कर देंगी

जाने कितनी नज़रें इनको तकती होंगी
इन आँखों में काजल सदा लगा के रखना

अपनी पलकों को तुम ज़रा झुका के रखना......