Friday, 5 August 2011

तेरी आँखें....



सोच रहा था आज यूँ ही बैठा बैठा मैं 
क्यूँ न लिख दूं आज नयी कोई कविता मैं

सागर से गहरी तेरी इन दोनो  आँखों पे
उनसे जुड़ी बड़ी और छोटी सब बातों पे

इन आँखों में कितनी बातें छुपी हों जैसे
जो होठों पे आते आते रुकीं हों जैसे

लगता है कि अभी ये आँखें बोल उठेंगी
राज़ तुम्हारे दिल का कोई खोल उठेंगी

राज़ हैं जो भी उनको ज़रा छुपा के रखना
अपनी पलकों को तुम ज़रा झुका के रखना

वरना ये आँखें न जाने क्या कर देंगी
जाने कितनो को ये दीवाना कर देंगी

जाने कितनी नज़रें इनको तकती होंगी
इन आँखों में काजल सदा लगा के रखना

अपनी पलकों को तुम ज़रा झुका के रखना......

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