Saturday, 31 December 2011

New Year पे New MoU with ज़िन्दगी



ज़िन्दगी हम हाथ थामे,बस यूँ चलते रहें
चाहे घड़ी, घंटे, दिन महीने साल बदलते रहे 
बीतते इस साल को हंस के विदा चल कर लें हम
आने वाले साल में चल रंग--मस्ती भर लें हम
नए इस साल में कोई नया सा प्रण करें 
मुश्किलों के काफिलों से डट के क्यों रण करें
करें प्रण इस साल में हांसिल हमें वो मुकाम हो
पैरों तले हो ज़मीन पर मुट्ठी में आसमान हो 
नाम लिख दें हम गगन पे अपना, चल ज़िन्दगी
कर दें हम साकार ये भी सपना, चल ज़िन्दगी.....

-संकल्प त्रिपाठी 'साहिल'


Tuesday, 4 October 2011


तूफानों से कह दो, 'साहिल' की तबाही का ख्वाब रहने दें,
                                लहरों का मुकद्दर उसके पैरों की रेत से जादा कुछ भी नहीं

इससे जादा तेरे इम्तिहान क्या दूं ऐ ज़िन्दगी
                                हर एक कदम बढ़ाने पे तेरी दो ठोकरें खाता हूँ..

डरते हैं ज़िन्दगी की आजमाईश से, वो और होंगे
                              हम तो वो हैं जो अक्सर ज़िन्दगी को आजमाते हैं...

दिल में रखना मुझे, जिधर जाना...

तूने देखा जो इस कदर जाना
दिल पे ऐसा हुआ असर जाना
है दिल खुद से बेखबर जाना
पर है इतनी इसे खबर जाना
की दिल में है तेरा घर जाना
अब तेरे बिन मुझे किधर जाना
  दिल में रखना मुझे, जिधर जाना...

Tuesday, 9 August 2011

लबों की ख़ता थी ये कि उनका ज़िक्र कर दिया
ये हाथ तो सज़दे में अपने आप उठ गए ......

Monday, 8 August 2011


मैंने सोचा की कुछ लिखूं उनकी
नशीली झील सी दो आँखों पे
पर ये कैसी कशिश है ज़ालिम में 
कलम भी अपने होश खो बैठी..

Sunday, 7 August 2011

दोस्तों तुम्हारी दोस्ती का शुक्रिया

तुम्ही से सारी हंसी- मस्ती,मज़ाक और चुटकुले 
लम्हा लम्हा दिल्लगी का शुक्रिया

सारे ग़म सब मुश्किलों में भी तुम्ही बस साथ हो
फेविकोल सी दोस्ती का शुक्रिया 

ज़िन्दगी के 'कैनवास' पे रंग सारे तुम से हैं
रंग बिरंगी ज़िन्दगी का शुक्रिया 

मंजिलें जो भी रहें रस्तों का मतलब तुम से है
हर कदम आवारगी का शुक्रिया

दोस्तों तुम्हारी दोस्ती का शुक्रिया

Friday, 5 August 2011

तुम पहली किरण हो....


झाँक के देखी जो अपने दिल में
मैंने अहमियत तुम्हारी
तो तुम्हे पाया मैंने अपने दिन में
पहली किरण की जगह



पहली किरण जो हौले से देती है दस्तक
मेरी अँधेरी रातों के दरवाज़े पर

और कहती है
"मुझे मालूम है तुम्हे रात भर था  मेरा इंतज़ार 
इसी लिए आई हूँ करने, मै तुम्हारे दिन का श्रृंगार

परन्तु मै इतनी आसानी से नहीं मिलूंगी तुम्हे
मुझे पाने के लिए तुम्हे नींद से जागना होगा
मेरे इंतज़ार में जो सपने देखे थे रात भर
उन्हें साकार करने के लिए दौड़ना-भागना होगा

दिन भर साथ रहूंगी तुम्हारे
पर सिर्फ तुम्हारी प्रेरणा बनके
अगर कर पाए तुम इस अग्नि-परीक्षा को पार
तब दे दूँगी मै तुम्हारे सपनों को आकार 

कड़ी धूप से मै शीतल छाँव बन जाऊँगी
बनूँगी साँझ, साँझ बन के मै ढल जाऊँगी
महसूस करना मुझे उगते हुए चाँद की शीतलता में 
मै बन के चांदनी तुम्हारे आँगन में उतर आऊंगी

तुम्हारी ही तरह मुझे भी है  उस पल का इंतज़ार 
मै सिमट जाऊँगी तुम में, मुझे बाहों में भर लेना
हसीन रात, ठंडी पुरवाई, और सिर्फ हम दोनों 
तारों की छाँव में अपने सारे सपने सच कर लेना
अधूरे से हैं हम दोनों ही एक दूजे क बिन साथी
एक हो कर हम दोनों को मुकम्मल कर देना

परन्तु इस अथाह असीमित प्रेम-पूरित 
पल को पाने के लिए तुम्हे अभी नींद से जागना होगा
मेरे इंतज़ार में जो सपने देखे थे रात भर
उन्हें साकार करने के लिए दौड़ना-भागना होगा....."

तुम्हारी बातें सुनते ही मै उठ खडा होता हूँ
दिन भर कड़ी मेह्नत करने के लिए तैयार
क्यूंकि ज्ञात है मुझे कि तभी कर पाऊंगा
अपने और तुम्हारे सपनों को साकार

तुमसे बस इतना ही निवेदन है प्रिये
रोज़ यूँ ही पहली किरण बन के
मुझे नींद से जगाती रहना
बन के तुम प्रेरणा मन्ज़िल की तरफ
यूँ ही मेरे कदम बढ़ाती रहना

हमेशा मेरे दिन की पहली किरण बनी रहना.....

तेरी आँखें....



सोच रहा था आज यूँ ही बैठा बैठा मैं 
क्यूँ न लिख दूं आज नयी कोई कविता मैं

सागर से गहरी तेरी इन दोनो  आँखों पे
उनसे जुड़ी बड़ी और छोटी सब बातों पे

इन आँखों में कितनी बातें छुपी हों जैसे
जो होठों पे आते आते रुकीं हों जैसे

लगता है कि अभी ये आँखें बोल उठेंगी
राज़ तुम्हारे दिल का कोई खोल उठेंगी

राज़ हैं जो भी उनको ज़रा छुपा के रखना
अपनी पलकों को तुम ज़रा झुका के रखना

वरना ये आँखें न जाने क्या कर देंगी
जाने कितनो को ये दीवाना कर देंगी

जाने कितनी नज़रें इनको तकती होंगी
इन आँखों में काजल सदा लगा के रखना

अपनी पलकों को तुम ज़रा झुका के रखना......

Sunday, 3 July 2011

रेत का घर

तुझको अपना बनाने की ख्वाहिश थी बस 
बस तेरा नाम मै गुनगुनाता रहा
तुझको रख के निगाहों में साहिल सदा 
सारी दुनिया से नज़रें चुराता रहा 

बस तेरा नाम लेकर मै जीता गया 
ख्वाब तेरे हमेशा सजाता रहा
देखता था तुझे हर घडी हर जगह
रेत पर घर हमेशा बनाता रहा

एक दिन आया झोंका हवा का मगर
जो की साहिल के घर को उड़ाता रहा 
मै भी मजबूर था वो मेरे सामने 
रेत में मेरे घर को मिलाता रहा

जिसको अपना बनाने की कोशिश करी
उम्र भर मुझसे दामन बचाता रहा
किससे कहता ? है साहिल अकेला बहुत
वो अकेला ही आंसू बहाता रहा........